माता वैष्णो देवी का बुलावा आया और हम माता के दरबार में हाजिर हो गए.
पहले भी अवसर मिला था और पहले भी जाना हुआ था परिवार से साथ. पर ये अवसर पहले से भिन्न और अलग था क्योंकि अब कि बार यह कोइ नियोजित कार्यक्रम नहीं था, पहले से कोई तैयारी नहीं थी, बस सिर्फ़ हमारे अज़ीज़ मित्र अजय गुप्ता ने कहा कि भाई वैष्णो देवी चल रहे हो क्या ? हमने सिर्फ़ इतना पूछा कब ! और उन्होने कहा कि बस परसों. . . . .! और हम थे कि तैयार हो गए चलो.
हमारे जीवन में कभी कभी ऐसा अवसर आता है जब हम सिर्फ़ प्रभु कि इच्छा समझ कर उसके हवाले कर अपने आप को छोड़ देते है, जो होगा समय ने सोच रखा है वही होगा और जो होगा उससे से अच्छा कोई हो नहीं सकता.
और यही हुआ माता वैष्णो कि कृपा और आशीर्वाद से पता भी नहीं चला कैसे तत्काल आरक्षण हो गया और कैसे अनजान लोगो को दोस्त बना लिया. और उन दोस्तों के साथ निकाल पड़े स़फर पर, आबूरोड स्टेशन पर सबके साथ में बैठ कर सबसे पहले तो परिचय किया. भाई अजय ने सभी से परिचय कराया, यह तो फ़ैमिली भ्रमण कार्यक्रम है और में और अजय ही थे जो कि सिंगल थे, बाकी सब के साथ उनके परिवार बाल बच्चे, मैंने सोचा भाई हम भी परिवार सहित होते तो कितना अच्छा होता, खैर शायद उनके आने का संस्कार नहीं था, सिर्फ़ हमारा ही बुलावा है और हमे ही चलना है, दिल को यही तसल्ली दी. जय माता दी ! बोल सच्चे दरबार की जय.....!
पहले भी अवसर मिला था और पहले भी जाना हुआ था परिवार से साथ. पर ये अवसर पहले से भिन्न और अलग था क्योंकि अब कि बार यह कोइ नियोजित कार्यक्रम नहीं था, पहले से कोई तैयारी नहीं थी, बस सिर्फ़ हमारे अज़ीज़ मित्र अजय गुप्ता ने कहा कि भाई वैष्णो देवी चल रहे हो क्या ? हमने सिर्फ़ इतना पूछा कब ! और उन्होने कहा कि बस परसों. . . . .! और हम थे कि तैयार हो गए चलो.
हमारे जीवन में कभी कभी ऐसा अवसर आता है जब हम सिर्फ़ प्रभु कि इच्छा समझ कर उसके हवाले कर अपने आप को छोड़ देते है, जो होगा समय ने सोच रखा है वही होगा और जो होगा उससे से अच्छा कोई हो नहीं सकता.
और यही हुआ माता वैष्णो कि कृपा और आशीर्वाद से पता भी नहीं चला कैसे तत्काल आरक्षण हो गया और कैसे अनजान लोगो को दोस्त बना लिया. और उन दोस्तों के साथ निकाल पड़े स़फर पर, आबूरोड स्टेशन पर सबके साथ में बैठ कर सबसे पहले तो परिचय किया. भाई अजय ने सभी से परिचय कराया, यह तो फ़ैमिली भ्रमण कार्यक्रम है और में और अजय ही थे जो कि सिंगल थे, बाकी सब के साथ उनके परिवार बाल बच्चे, मैंने सोचा भाई हम भी परिवार सहित होते तो कितना अच्छा होता, खैर शायद उनके आने का संस्कार नहीं था, सिर्फ़ हमारा ही बुलावा है और हमे ही चलना है, दिल को यही तसल्ली दी. जय माता दी ! बोल सच्चे दरबार की जय.....!